विकिलीक्स के माध्यम से जूलियन असांजे ने जो किया, वो उचित था या फिर कोई अपराध, ये मुद्दा किसी राजनैतिज्ञ के लिए गंभीर विचार का मुद्दा हो सकता है, लेकिन एक आम नागरिक की हैसियत से इसे कोई भूल या शरारत कहना शायद ठीक नहीं। एक प्रश्न उठता है की वे कौनसे मुद्दे हैं जो "अति गोपनीय" होते हैं एंव जिनको राष्ट्र हित में छुपाया जाना चाहिए, साथ ही इसका निर्धारण कौन करेगा की इसकी परिधि में किन किन मुद्दों को शामिल किया जाना चाहिए ?
विकिलीक्स से एक बात उभर कर आई है की पत्रकारिता जो शायद पहले एक सीमा पर जाकर रुक जाती थी, कहना चाहिए की गोपनियता की सीमा नहीं लांघ पाती थी, उस सीमा पर प्रश्न चिन्ह लगा रही है। कहीं न कहीं पत्रकारिता की सीमाओं का पुनः सीमांकन चल रहा है।
किसी भी राष्ट्र, सरकार को राष्ट्रहित की आड़ में ऐसे कार्य करने की इजाजत तो नहीं दी जा सकती जिसे सार्वजनिक करते उसी की गर्दन मारे शरम के "अमेरिका-अमेरिका" हो जाये।






ब्लॉगिंग के अद्भुत-लोक में आपका स्वागत है...!
जवाब देंहटाएंआपका धन्यवाद, वैसे आप का स्वागत मैं पहले भी ले चुका हूँ संजय जी,
जवाब देंहटाएंपुनः आपका साधुवाद.
... naye blog ke liye badhaai va shubhakaamanaayen !!!
जवाब देंहटाएंउदय जी, आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंनिश्चय ही इसका निर्धारण होना चाहिए की किन मुद्दों को गुप्त रखना है। पत्रकारिता देशहित में अपनी हदें ना लांघें.
जवाब देंहटाएंनए ब्लॉग की बधाई अरविन्द जी ।
@जील मैडम जी, ब्लॉग पर पधारकर हौसला बढाने के लिए आपका धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंsorry arvind ji naye blog ke liye badhai
जवाब देंहटाएंअगर बातें प्रमाणिक हैं तो उनके प्रकाशन में कोई गुरेज़ नहीं होना चाहिए ... मीडिया को अपना जजमेंट नहीं देना चाहिए .. तथ्य जरूर देने चाहियें ..
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